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Panchgavya or Cowpathy-पंचगव्य
रोग व पापनाशक पंचगव्य
पंचगव्य शरीर के साथ मन व बुद्धि को भी शुद्ध, सबल व पवित्र बनाता है। शरीर में संचित हुए रोगकारक तत्वों का उच्चाटन कर सम्भावित गम्भीर रोगों से रक्षा करने की क्षमता इसमें निहित है। इसमें शरीर के लिए आवश्यक जीवनसत्व (विटामिन्स), खनिज तत्व, प्रोटीन्स, वसा व ऊर्जा प्रचुर मात्रा में पायी जाती है। गर्भिणी माताएँ, बालक, युवक व वृद्ध सभी के लिए यह उत्तम स्वास्थ, पुष्टि व शक्ति का सरल स्त्रोत है।
निर्माण व सेवन-विधि :
१ भाग गोघृत, १ भाग गोदुग्ध, १ भाग गोवर का रस, २ भाग गाय का दही व ५ भाग छाना हुआ गोमूत्र, सब मिलाकर २५–३० मि.ली. प्रात: खाली पेट धीरे-धीरे पियें। बाद में २ – ३ घंटे तक कुछ न लें। तीन बार इस मंत्र का उच्चारण करने के बाद पंचगव्य पान करें।
यत् त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके।
प्राशनात् पंचगव्यस्य दहत्वग्निरिवेन्धनम्।।
अर्थात त्वचा, मज्जा, मेधा, रक्त और हड्डियों तक जो पाप (दोष, रोग) मुझमें प्रविष्ट हो गये है, वे सब मेरे इस पंचगव्य-प्राशन से वैसे ही नष्ट हो जाये, जैसे प्रज्वलित अग्नि में सुखी लकड़ी डालने पर भस्म हो जाती है। (महाभारत)
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